Monday, September 8, 2008

कौन...

कौन देगा जवाब .
क़दमों की इन आहटों का मेरे आंगन में
सासों की घबराहट का मेरे तन मन में
उन सहमी आंखों का मेरे इस चंचल मन में
मेरे सवालों का जो गए है जीवन में

कौन देगा जवाब ..
उन सवालों का जो अचानक सबसे मुश्किल लगने लगे हैं
उन अनसुनी अनकही बातों का जो मेरे मन को कचोटने लगे हैं
उन अनखुली गाठों का जो और कसती जा रही हैं
उन भीर भरे रास्तों का जो अकेला छोर बरहे जा रहे हैं

कौन रोकेगा ...
मेरी सांझ के ढलते सूरज की किरणों को
मेरी रूकती हवा में बिखरे मिट्टी के हर एक कण कण को
समय की सुइयों से हरपल आगे बढ़ते इस जीवन को
मेरे अंधेरे मन में और गहराई में जाते इस तम को

कौन सुनेगा ....
सन्नाटों मैं गूँज रही मेरी उन करून चीखों को
जल चुकी लकरी के छिद्रों से निकलते मद्धम क्रंदन को
आस पास के सब घरों से आते ... लाशों के पास रोती बिलखती आत्माओं के उस शोर को
मेरे अन्दर बैठे .. या शायद सो रहे उस अधूरे आदमी की सासों की डोर को

कौन थामेगा .....
इस पतंग की कटी डोर को जिसे पवन ऊरा चली है
इस महंत के मुह से निकले पावन शब्दों के ओर छोर को
इस गाथा में चलते हुए राहियों के आँचल को
कहीं नही जो थामना चाहता ऐसे मेरे मन चंचल को

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