Wednesday, February 11, 2009

देखा है क्या ?

अश्रू पूरित नयन ले कर , अल्प शिक्षित करम ले कर ;

हर दिशा की शरण ले कर , मन में कितने भरम ले कर ;

साज़ पे पृथ्वी के हरपल , गिरते झुकते कदम ले कर ;

शिथिल जिव्हा , चर्म ठिठुरित , भाग्य का संस्मरण ले कर ;

श्याम रात्रि में निकलते , चाँद को देखा किसी ने ?


कंठ था उसका अवरोधित , नाम यद्यपि था कुल्शोभित ;

फ़िर भी जीवन संग ले कर , दाग ले कर , क्लेश ले कर ;

मन का सारा द्वेष ले कर , ख़ुद का थोरा तेज़ ले कर ;

बादलों की सेज ले कर , चाहतें तबरेज ले कर ;

क्या कभी देखा किसी ने , चाँद को देखा किसी ने ?


आदि और अनंत ले कर, कोई काज पंथ ले कर ,

फ़िर भी रोज़ ही संग अपने अगिनत नक्षत्र ले कर,

चाहतें एकछत्र ले कर , मन्नतें सर्वत्र ले कर ,

धुनी रमाते साधुओं के , मंत्रों का सब अर्क ले कर ,

उस्रा पर फ़िर अस्त ले कर, उषा निशा का फर्क ले कर,

राहियों को राह दिखाते, चाँद को देखा क्या तुमने ?