Friday, July 3, 2009

कौन है वहां…

आज अकेला जान मुझे ….

एक ख्वाब अचानक

मेरे घर आकर ….

दरवाज़े पर दस्तक देकर

कुछ देर रुका शायद

लेकिन जब मैंने क़दमों की आहट सुन दरवाज़ा खोला

कोई नही था


आज अकेले बैठा था जब

एक हवा का झोंका आकर

मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फिरा कर

मुरने से पहले मेरे कहीं छुप गया

मैंने खोजा उसको ..

हर ओर आवाज़ लगाई मैंने लेकिन वहाँ ….

कोई नही था


मेरी खिरकी पे कल रात ….

जब मेरी आँखें बोझिल थी

चाँद शायद अपने पथ से

थोरा थोरा नीचे आकर ….

मेरी खिरकी में झाँक रहा था

कोमल किरणे आंखों पे परने से ..

मेरी आंख खुली तो

वापस वो जल्दी से ..

अपने बादलों के कम्बल में ...

यूँ छुप गया जैसे वहां ..

कोई नही था ….


कल चलते चलते मैंने अपना नाम सुना

मुर कर जब देखा तो पाया

दूर क्षितिज पर कोई खरा है ….

उससे देख कर मैं चला उधर

तेज़ कदम लेकर …।

आस पास के शोर को मन से ओझल कर कर

हाथों के भारी समान को वाही छोर कर

पर जैसे ही लगा पहुचने पास मैं उसके

आँख खुल गई मैंने देखा ….

कोई नही था …..