Thursday, December 29, 2011

मुद्दे की बात



मुद्दा हर  सफल  होता  है, 
हर  मुद्दे  का  हल  होता  है, 
पर  जो  मुद्दे  मैं  वो  शामिल  हों, 
तो  फिर  मुद्दा  दखल  होता  है |

क्यूँ कर ये मुद्दे  ऐसी  ज़ुद्दो  ज़ेहेद  बनते  हैं, 
ये  फैसले कौन  सी  तामिल की हद  बनते  हैं, 
बड़े  कमज़ोर  हो  जाते  हैं  तख़्त  ओ  ताज  के  मालिक,  
ये  मुद्दे  जैसे  ही  कमबख्त हम  सफ़र  बनते  हैं |

अब  संजीदगी  है  गौण  .. अब  कुछ  असल  नहीं, 
 अब  भीड़  है  बस  … कोई   भी  सच्ची  सक्ल  नहीं, 
है  सही  कौन  गलत  कौन  इससे  अब  फर्क  नहीं, 
बात  है  बात  की  बस …  बात  का  कोई  अर्क  नहीं| 

अब  गर  मुद्दे  पे  रहे  बात  तो  फिर  बात  बने, 
न  हो  सतरंज  की  बिसात   तो  फिर  बात  बने,  
मैं  नहीं  कहता  सही  है  ये  या  वो  गलत  है, 
गर  हो  मंजिल  से  सरोकार  तो  फिर  बात  बने|