Tuesday, August 5, 2008

फरियाद करते हैं

जहाँ खुलते हैं दरवाजे, वहीं दरख्वास्त करते हैं ,
नहीं अब हर किसी से हम तो अपनी बात करते हैं ;

है लगता जब हमें मायूस हैं, फरियाद करते हैं ,
तभी अब उस खुदा को दिल मैं हम आबाद करते हैं ;

जो सीधे रास्तों पर गर कहीं कोई फिर मोर आता है ,
तो मुर जाते हैं हैं हम , अब हम नहीं जेहाद करते हैं ;

बदलना सीख जाएँगे , बदलना चाहते हैं जो ,
नहीं हैं वो बदलते जो बस इसकी बात करते हैं ;

है लगता हमको, जिंदा रहना अब भी चाहते हैं वो ,
मगर मुर्दे कहाँ पर जिंदगी की बात करते हैं ;

यहाँ राहें तो रौशन हैं, नहीं इंसान पर रौशन ,
मगर फिर भी हमारे दिल मैं ये ज़ज्बात रहते हैं ,
के ढलता है जो कोई दिन, तो फिर माहताब खिलता है ,
नहीं गर ख़ूबसूरत क्यूँ सब उसकी बात करते हैं ;

है उस माहताब ने भी यार कई वारों को है झेला ,
है उस पर दाग फिर भी लोग उसको याद करते हैं ;

के अब हर रास्ते पर हम है चाहते एक चौराहा ,
मगर फिर हर उस चौराहे पे फिर ये बात करते हैं ,
है कैसा रास्ता, अब ये कहाँ जाएगा क्या मालूम ,
नहीं हम जानते जब ये तो क्यूँ फरियाद करते हैं ;

1 comment:

Amie said...

के ढलता है जो कोई दिन, तो फिर माहताब खिलता है ,
नहीं गर ख़ूबसूरत क्यूँ सब उसकी बात करते हैं ;

these lines also go for the whole of the poem itself coz its beautiful n soul-digging. with the simplest thoughts of every person put up in the most remarkable way which inspires one to think and rethink about one's own take on life.

kudos........