एक शाम अँधेरी
कौतुहल से घिरे हुए
खुद को मैंने ,
खुद से बातें करते देखा .
एक घडी गोधुली ,
अलसाई आँखों से मैंने
चारों ओर चलते जीवन को
मुझपे व्यंग सा कसते देखा
उस रोज़ पुरानी
चीज़ों ने थी कमर कसी
मुझको बीते कल में
खींच खींच के ले जाने को
एक लिफाफा
अँधेरे का
मेरे चारों ओर बन आया
धीरे धीरे ,
बड़ा अजब षड़यंत्र लगा ये
मुझे नहीं विश्वास हुआ
अर्ध निद्रा में घिरे हुए
अस्थिर से मन का साथ
ये कैसा खिलवाड़ हुआ ...
1 comment:
welll expressed
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