Wednesday, September 16, 2009

ये क्या चाहती हैं

ये राहें मेरी खोजती आशियाने

ये बातें मेरी खोजती है ठिकाने ,

घर कोई बख्तरजदा चाहतीं हैं

ये उरने को थोरी हवा चाहतीं हैं

ये चाहती है नीला सा एक आसमा हो

जहाँ साँस लेने को आबो हवा हो ..

ये कहतीं है दे दो मुझे एक ठिकाना

मगर मुझसे सारा जहाँ चाहती हैं


मैं आपने ही भीतर जगह चाहता हूँ ….

मैं चलने की थोरी वजह चाहता हूँ

नही मांगता हूँ मैं नभ के सितारे

मगर एक दीपक सदा चाहता हूँ

मैं दीपक की लौ मैं ठिठक कर ठिठुर कर

नही कहता जीवन हो मेरा सिमट कर

मगर फिर भी जीवन में लौ चाहता हूँ

हूँ मेरे मोती ,मैं जौ चाहता हूँ


रेतीला बवंडर

जो आया हो अन्धर

ये छोटा सा एक आशियाँ चाहती हैं

ये मुझसे बस थोरी दुआ चाहती हैं

ये मेरे ही अन्दर की हैं जो हवाएँ

ये जीने की आबो हवा चाहती हैं

ये कहतीं है दे दो मुझे एक ठिकाना

मगर मुझसे सारा जहाँ चाहती हैं

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