ये राहें मेरी खोजती आशियाने …
ये बातें मेरी खोजती है ठिकाने ,
न घर कोई बख्तरजदा चाहतीं हैं …
ये उरने को थोरी हवा चाहतीं हैं
ये चाहती है नीला सा एक आसमा हो …
जहाँ साँस लेने को आबो हवा हो ..
ये कहतीं है दे दो मुझे एक ठिकाना …
मगर मुझसे सारा जहाँ चाहती हैं …
मैं आपने ही भीतर जगह चाहता हूँ ….
मैं चलने की थोरी वजह चाहता हूँ …
नही मांगता हूँ मैं नभ के सितारे …
मगर एक दीपक सदा चाहता हूँ …
मैं दीपक की लौ मैं ठिठक कर ठिठुर कर …
नही कहता जीवन हो मेरा सिमट कर …
मगर फिर भी जीवन में लौ चाहता हूँ …
न हूँ मेरे मोती ,मैं जौ चाहता हूँ …
रेतीला बवंडर …
जो आया हो अन्धर …
ये छोटा सा एक आशियाँ चाहती हैंये मुझसे बस थोरी दुआ चाहती हैं …
ये मेरे ही अन्दर की हैं जो हवाएँ …
ये जीने की आबो हवा चाहती हैं
ये कहतीं है दे दो मुझे एक ठिकाना …
मगर मुझसे सारा जहाँ चाहती हैं …
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