अश्रू पूरित नयन ले कर , अल्प शिक्षित करम ले कर ;
हर दिशा की शरण ले कर , मन में कितने भरम ले कर ;
साज़ पे पृथ्वी के हरपल , गिरते झुकते कदम ले कर ;
शिथिल जिव्हा , चर्म ठिठुरित , भाग्य का संस्मरण ले कर ;
श्याम रात्रि में निकलते , चाँद को देखा किसी ने ?
कंठ था उसका अवरोधित , नाम यद्यपि था कुल्शोभित ;
फ़िर भी जीवन संग ले कर , दाग ले कर , क्लेश ले कर ;
मन का सारा द्वेष ले कर , ख़ुद का थोरा तेज़ ले कर ;
बादलों की सेज ले कर , चाहतें तबरेज ले कर ;
क्या कभी देखा किसी ने , चाँद को देखा किसी ने ?
आदि और अनंत ले कर, कोई काज न पंथ ले कर ,
फ़िर भी रोज़ ही संग अपने अगिनत नक्षत्र ले कर,
चाहतें एकछत्र ले कर , मन्नतें सर्वत्र ले कर ,
धुनी रमाते साधुओं के , मंत्रों का सब अर्क ले कर ,
उस्रा पर फ़िर अस्त ले कर, उषा निशा का फर्क ले कर,
राहियों को राह दिखाते, चाँद को देखा क्या तुमने ?
3 comments:
godly hai......:)
yaar mei kitni bhi fight maar loo hindi padh ke mujhe feel nahi aati ......
achchha hai ne ways ......
saale jab feel hi nahi aai to acchi kya hai
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