मुद्दा हर सफल होता है,
हर मुद्दे का हल होता है,
पर जो मुद्दे मैं वो शामिल हों,
तो फिर मुद्दा दखल होता है |
क्यूँ कर ये मुद्दे ऐसी ज़ुद्दो ज़ेहेद बनते हैं,
ये फैसले कौन सी तामिल की हद बनते हैं,
बड़े कमज़ोर हो जाते हैं तख़्त ओ ताज के मालिक,
ये मुद्दे जैसे ही कमबख्त हम सफ़र बनते हैं |
अब संजीदगी है गौण .. अब कुछ असल नहीं,
अब भीड़ है बस … कोई भी सच्ची सक्ल नहीं,
है सही कौन गलत कौन इससे अब फर्क नहीं,
बात है बात की बस … बात का कोई अर्क नहीं|
अब गर मुद्दे पे रहे बात तो फिर बात बने,
न हो सतरंज की बिसात तो फिर बात बने,
मैं नहीं कहता सही है ये या वो गलत है,
गर हो मंजिल से सरोकार तो फिर बात बने|