आज अकेला जान मुझे ….
एक ख्वाब अचानक …
मेरे घर आकर ….
दरवाज़े पर दस्तक देकर …
कुछ देर रुका शायद …
लेकिन जब मैंने क़दमों की आहट सुन दरवाज़ा खोला …
कोई नही था …
आज अकेले बैठा था जब …
एक हवा का झोंका आकर …
मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फिरा कर …
मुरने से पहले मेरे कहीं छुप गया …
मैंने खोजा उसको ..
हर ओर आवाज़ लगाई मैंने लेकिन वहाँ ….
कोई नही था …
मेरी खिरकी पे कल रात ….
जब मेरी आँखें बोझिल थी …
चाँद शायद अपने पथ से …
थोरा थोरा नीचे आकर ….
मेरी खिरकी में झाँक रहा था …
कोमल किरणे आंखों पे परने से ..
मेरी आंख खुली तो …
वापस वो जल्दी से ..
अपने बादलों के कम्बल में ...
यूँ छुप गया जैसे वहां ..
कोई नही था ….
कल चलते चलते मैंने अपना नाम सुना …
मुर कर जब देखा तो पाया …
दूर क्षितिज पर कोई खरा है ….
उससे देख कर मैं चला उधर …
तेज़ कदम लेकर …।
आस पास के शोर को मन से ओझल कर कर …
हाथों के भारी समान को वाही छोर कर …
पर जैसे ही लगा पहुचने पास मैं उसके …
आँख खुल गई मैंने देखा ….
कोई नही था …..