The original poem as written by Pd. Ram Prasad Bismil
कभी तो कामयाबी पर मेरा हिन्दोस्तान होगा
रिहा सय्याद के हाथों से अपना गुलसितां होगा
चखाएंगे मज़ा फ़िर वादी ऐ गुलशन का गुलचीन को
बहार आएगी उस दिन जब ये अपना आशियाँ होगा
वतन की आबरू का पाश देखे कौन करता है
सुना है आज मकतल मैं हमारा इन्तेहाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मै कहाँ और तू कहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पे लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा ....
My take on it ...........
उन्होंने जान दे दी थी .... सोचा था भला होगा
सोचा था की उनका देश भी आगे खरा होगा
नही वो जानते थे ये मगर की हम ... जो पहले लुटे थे .... फ़िर कटे थे ..
उन्हें अब बाँट देगे वो...
के अब भाई ही भाई का गला यूँ रेतता होगा....
था जिसको पहले बांटा नाम से और काम से सबने
उन्हें अब धर्म बांटेगा ... उन्हें अब देश बांटेगा ..
भगवान को अल्लाह ने काफिर कहा था कब ..
मगर इंसान ही अब वो खुदा और राम बांटेगा..
चखना था मज़ा जिस वादी ऐ गुलशन का गुलचीन को ...
न वो वादी कभी आई ... और नही समाँ आया ...
शहीदों की चिताएं तो अब हैं हो चुकी ठंडी ;
मगर नही लगे मेले और न नाम ओ निशाँ आया ;
कोई जो नाम भी उनका जो पूछे ... हम कहेंगे .... कौन ????
के होगी बात भी गर आज उनकी हम रहेंगे मौन ..
लगता है यही है कामयाबी ... गलती थी ये उनकी ही ...
सोचा था जिन्होंने की ये सय्याद बाहरी है ...
जिन्होंने लुटा है हमको .... हमें काटा और बांटा है ..
वो अपने हाथ ही हैं दोस्त ... वो अपनी ही आरी है ....