इस बेबसी में ख़लल चाहता हूँ ,
किसी ओर से एक पहल चाहता हूँ;
मैं ये सोचता हूँ कि रुक जाऊं सोचूं,
मैं जीवन में थोड़ा सब्र चाहता हूँ ;
शायद मैं थोड़ा सफ़र चाहता हूँ ,
मैं राहों मैं थोड़ा बदल चाहता हूँ ;
कभी खुद को आगे को देता हूँ धक्का,
कभी ऊँचे पेड़ों का फ़ल चाहता हूँ ;
कभी मुझको लगता है सब कुछ छलावा,
कभी मोड़ पे एक महल चाहता हूँ ;
मुझे आते जाते ये बादल लुभाते ,
मैं शायद ये अम्बर पटल चाहता हूँ;
मैं आया कहाँ से, कहाँ जाउंगा मैं,
मैं सारे सवालों का हल चाहता हूँ;
जब मन में हैं उठते यह सारे बवंडर,
मैं ये सोचता हूँ, मैं क्या चाहता हूँ ।